THOUGHT OF THE DAY

“हर्ष और आनंद से परिपूर्ण जीवन केवल ज्ञान और विज्ञान के आधार पर संभव है।- डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन”



Wednesday 8 September 2021

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जीवनी

 

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जीवनी - Biography of Dr. Sarvepalli Radhakrishnan





पूरा नामडॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन
धर्म/जातिहिन्दू/ब्राह्मणपद
जन्म5 सितम्बर 1888
जन्म स्थानतिरुमनी गाँव, मद्रास
माता-पितासिताम्मा, सर्वपल्ली विरास्वामी
विवाहसिवाकमु (1904)
मृत्यु17 अप्रैल 1975

.डॉ राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर 1888 को तमिलनाडु के छोटे से गांव तिरुमनी में ब्राह्मण परिवार में हुआ था. इनके पिता का नाम सर्वपल्ली विरास्वामी था, वे विद्वान ब्राम्हण थे. इनके पिता के ऊपर पुरे परिवार की जिम्मदारी थी, इस कारण राधाकृष्णन को बचपन से ही ज्यादा सुख सुविधा नहीं मिली. राधाकृष्णन ने 16 साल की उम्र में अपनी दूर की चचेरी बहन सिवाकमु से शादी कर ली. जिनसे उन्हें 5 बेटी व 1 बेटा हुआ. इनके बेटे का नाम सर्वपल्ली गोपाल है, जो भारत के महान इतिहासकारक थे. राधाकृष्णन जी की पत्नी की मौत 1956 में हो गई थी.

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी की शिक्षा

डॉ राधाकृष्णन का बचपन तिरुमनी गांव में ही व्यतीत हुआ. वहीं से इन्होंने अपनी शिक्षा की प्रारंभ की. आगे की शिक्षा के लिए इनके पिता जी ने क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल, तिरुपति में दाखिला करा दिया. जहां वे 1896 से 1900 तक रहे. सन 1900 में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने वेल्लूर के कॉलेज से शिक्षा ग्रहण की. तत्पश्चात मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास से अपनी आगे की शिक्षा पूरी की. वह शुरू से ही एक मेंधावी छात्र थे. इन्होंने 1906 में दर्शन शास्त्र में M.A किया था. राधाकृष्णन जी को अपने पुरे जीवन शिक्षा के क्षेत्र में स्कालरशिप मिलती रही.

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का राजनीतिक जीवन 

भारत की आजादी के बाद यूनिस्को में उन्होंने देश का प्रतिनिदितिव किया। 1949 से लेकर 1952 तक राधाकृष्णन सोवियत संघ में भारत के राजदूत रहे। वर्ष 1952 में उन्हें देश का पहला उपराष्ट्रपति बनाया गया। सन 1954 में उन्हें भारत रत्न देकर सम्मानित किया गया। इसके पश्चात 1962 में उन्हें देश का दूसरा राष्ट्रपति चुना गया। जब वे राष्ट्रपति पद पर आसीन थे उस वक्त भारत का चीन और पाकिस्तान से युध्द भी हुआ। वे 1967में राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्त हुए और मद्रास जाकर बस गये।

सर्वपल्ली राधाकृष्णन को स्वतन्त्रता के बाद संविधान  निर्मात्री सभा का सदस्य बनाया गया था। शिक्षा और राजनीति में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए राधाकृष्णन को वर्ष 1954 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया था। सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 1967 के गणतंत्र दिवस पर देश को सम्बोधित करते हुए उन्होंने यह स्पष्ट किया था कि वह अब किसी भी सत्र के लिए राष्ट्रपति नहीं बनना चाहेंगे और बतौर राष्ट्रपति ये उनका आखिरी भाषण था।

सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का निधन 17 अप्रैल 1975 को एक लम्बी बीमारी के बाद हो गया राधाकृष्णन के मरणोपरांत उन्हें मार्च 1975 में अमेरिकी सरकार द्वारा टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इस पुरस्कार को ग्रहण करने वाले यह प्रथम गैर-ईसाई सम्प्रदाय के व्यक्ति थे। डॉक्टर राधाकृष्णन के पुत्र डॉक्टर एस. गोपाल ने 1989 में उनकी जीवनी का प्रकाशन भी किया।

उनके विद्यार्थी जीवन में कई बार उन्हें शिष्यवृत्ति स्वरुप पुरस्कार मिले। उन्होंने वूरहीस महाविद्यालय, वेल्लोर जाना शुरू किया लेकिन बाद में 17 साल की आयु में ही वे मद्रास क्रिस्चियन महाविद्यालय चले गये। जहा 1906 में वे स्नातक हुए और बाद में वही से उन्होंने दर्शनशास्त्र में अपनी मास्टर डिग्री प्राप्त की। उनकी इस उपलब्धि ने उनको उस महाविद्यालय का एक आदर्श विद्यार्थी बनाया।

दर्शनशास्त्र में राधाकृष्णन अपनी इच्छा से नहीं गये थे उन्हें अचानक ही उसमे प्रवेश लेना पड़ा। उनकी आर्थिक स्थिति ख़राब हो जाने के कारण जब उनके एक भाई ने उसी महाविद्यालय से पढाई पूरी की तभी मजबूरन राधाकृष्णन को आगे उसी की दर्शनशास्त्र की किताब लेकर आगे पढना पड़ा।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को मिले पुरस्कार

•  1938 ब्रिटिश अकादमी के सभासद के रूप में नियुक्ति।

•  1954 नागरिकत्व का सबसे बड़ा सम्मान, “भारत रत्न”।

•  1954 जर्मन के, “कला और विज्ञानं के विशेषग्य”।

•  1961 जर्मन बुक ट्रेड का “शांति पुरस्कार”।

•  1962 भारतीय शिक्षक दिन संस्था, हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिन के रूप में मनाती है।

•  1963 ब्रिटिश आर्डर ऑफ़ मेरिट का सम्मान।

•  1968 साहित्य अकादमी द्वारा उनका सभासद बनने का सम्मान (ये सम्मान पाने वाले वे पहले व्यक्ति थे)।

•  1975 टेम्पलटन पुरस्कार। अपने जीवन में लोगो को सुशिक्षित बनाने, उनकी सोच बदलने और लोगो में एक-दुसरे के प्रति प्यार बढ़ाने और एकता बनाये रखने के लिए दिया गया। जो उन्होंने उनकी मृत्यु के कुछ महीने पहले ही, टेम्पलटन पुरस्कार की पूरी राशी ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय को दान स्वरुप दी।

•  1989 ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा रशाकृष्णन की याद में “डॉ. राधाकृष्णन शिष्यवृत्ति संस्था” की स्थापना।

डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा लिखे गए पुस्तके

•  द एथिक्स ऑफ़ वेदांत.

•  द फिलासफी ऑफ़ रवीन्द्रनाथ टैगोर.

•  माई सर्च फॉर ट्रूथ.

•  द रेन ऑफ़ कंटम्परेरी फिलासफी.

•  रिलीजन एंड सोसाइटी.

•  इंडियन फिलासफी.

•  द एसेंसियल ऑफ़ सायकलॉजी.

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की मृत्यु

17 अप्रैल 1975 को एक लम्बी बीमारी के बाद डॉ राधाकृष्णन का निधन हो गया. शिक्षा के क्षेत्र में उनका योगदान हमेंशा याद किया जाता है. इसलिए 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाकर डॉ.राधाकृष्णन के प्रति सम्मान व्यक्त किया जाता है.

राधाकृष्णन को मरणोपरांत 1975 में अमेंरिकी सरकार द्वारा टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो कि धर्म के क्षेत्र में उत्थान के लिए प्रदान किया जाता है. इस पुरस्कार को ग्रहण करने वाले यह प्रथम गैर-ईसाई सम्प्रदाय के व्यक्ति थे.

Wednesday 1 September 2021

स्वच्छ भारत अभियान

  स्वच्छ भारत अभियान


स्वच्छ भारत अभियान क्या है

हमारे देश को स्वच्छ बनाने के लिए भारत सरकार ने एक नई योजना निकाली है जिसका नाम स्वच्छ भारत अभियान रखा गया है। इस अभियान के तहत सभी देशवासियों को इसमें शामिल होने के लिए कहा गया है। यह अभियान आधिकारिक रूप से 1999 से चला रहा है पहले इसका नाम ग्रामीण स्वच्छता अभियान था  लेकिन सरकार ने इसका पुनर्गठन करते हुए इसका नाम पूर्ण स्वच्छता अभियान कर दिया था।

स्वच्छ भारत अभियान का उद्घाटन माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर 2014 को गांधी जयंती पर किया था। क्योंकि गांधी जी का सपना था कि हमारा देश भी विदेशों की तरह पूर्ण स्वस्थ और निर्मल दिखाई दे।  इस बात को मध्य नजर रखते हुए प्रधानमंत्री जी ने उन्हीं के जन्मदिवस पर इस अभियान की शुरुआत दिल्ली के राजघाट से की थी।

स्वच्छ भारत अभियान का उद्देश्य

स्वच्छ भारत अभियान एक राष्ट्रीय स्तर का अभियान है जिसके अंतर्गत हमारे पूरे देश को स्वच्छ करने का लक्ष्य लिया गया है।

  1. इस अभियान का प्रथम उद्देश्य है कि  देश का कोना कोना साफ सुथरा हो।
  2. लोगों को बाहर खुले में शौच करने से रोका जाए।
  3. भारत के हर शहर और ग्रामीण इलाकों के घरों में शौचालय का निर्माण करवाया जाए।
  4. शहर और गांव की प्रत्येक सड़क गली और मोहल्ले साफ-सुथरे हो।
  5. हर एक गली में कम से कम एक कचरा पात्र आवश्यक रूप से लगाया जाए।

स्वच्छ भारत अभियान की जरूरत क्यों पड़ी

स्वच्छता अभियान का मुख्य उद्देश्य लोगों को वातावरण को स्वच्छ रखने के लिए प्रेरित करना है। लोग धीरे धीरे साफ सफाई की अहमियत भुलते जा रहे है। जहाँ देखो वही पर कूड़ा पर फेंक देते है जो कि हमारे स्वास्थय को बहुत हानि पहुँचाता है और आस पास की सुंदरता को भी कम करता है। खुले में कूड़ा फेंकने से भूमि की उपजाऊ शक्ति भी कम होती है। लोगों को गंदगी से होने वाली बिमारी से अवगत कराने और स्वच्छता का महत्व समझाने के लिए ही स्वच्छ भारत अभियान की जरूरत महसूस हुई।

स्वच्छता के लिए उठाए गए कदम-

1. खुले में शोच पर भी सरकार ने बैन लगाया है और बहुत से शोचालयों का निर्माण करवाया ताकि खुले में शोच पर मक्खियाँ न बैठे और बिमारी न फैले।
2. गलियों की और सड़को की सफाई सही ढंग से करने के लिए सफाई कर्मचारी नियुक्त किए गए है जो नियमित रुप से सफाई करने आते है।
3. जगह जगह पर कूड़ेदान रखे गए है और घरों को और दुकानों का कूड़ा लाने के लिए गाड़ी भेजी जाती है। अलग तरह के कूड़े के लिए अलग रंग के कूड़ेदान रखे गए है।
4. बहुत सी टीमों द्वारा जगह जगह जाकर कैंप भी लगाए गए ।

स्वच्छता अभियान के लाभ

 सरकार द्वारा चलाए गए इस अभियान से लोग साफ सफाई के लिए काफी जागरूक हुए है। स्वच्छता हमारे जीवन पर सीधा असर डालती है। साफ सफाई से हमें बहुत से लाभ हुए है-

1. हम आज स्वच्छ वातावरण में जी रहे हैं। सब जगह सफाई के कारण हमारा पर्यावरण बहुत ही स्वच्छ होता जा रहा है।
2. स्वच्छता की वजह से बिमारी कम फैल रही है और लोग स्वस्थ होते जा रहे है।न गंदगी होगी न बिमारी होगी।
3. जब आस पास कूड़ा कचरा नहीं होगा तो सब कुछ बहुत ही सुंदर दिखने लगता है।

 

books