Monday, 9 September 2024

राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस

                                                 राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस  (१० सितम्बर )

                           राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस (NDD) एक वार्षिक अभियान है, जिसका मकसद स्कूली बच्चों और आंगनवाड़ी के बच्चों को कृमि मुक्त करना है. इस दिवस पर बच्चों को एल्बेंडाज़ोल जैसी दवाएं खिलाई जाती हैं. इस अभियान के ज़रिए, बच्चों के समग्र स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा तक पहुंच, और जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया जाता है





राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस से जुड़ी कुछ खास बातें:

  • इस दिन के लिए, स्वास्थ्य, शिक्षा, समाज कल्याण, और सामाजिक शिक्षा विभाग मुख्य रूप से ज़िम्मेदार होते हैं.
  • इसके अलावा, पंचायती राज, आदिवासी कल्याण, ग्रामीण विकास, शहरी विकास, और पेयजल एवं स्वच्छता विभाग भी इस अभियान में अहम भूमिका निभाते हैं.
  • कुछ राज्यों में, कृमि की व्यापकता के आधार पर, साल में दो बार राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस मनाया जाता है.
  • त्रिपुरा में, भारत सरकार और विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देशों के मुताबिक, कृमि मुक्ति दिवस का आयोजन दो चरणों में किया जाता है. 


Tuesday, 3 September 2024

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जीवनी

 

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जीवनी - Biography of Dr. Sarvepalli Radhakrishnan





पूरा नामडॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन
धर्म/जातिहिन्दू/ब्राह्मणपद
जन्म5 सितम्बर 1888
जन्म स्थानतिरुमनी गाँव, मद्रास
माता-पितासिताम्मा, सर्वपल्ली विरास्वामी
विवाहसिवाकमु (1904)
मृत्यु17 अप्रैल 1975

.डॉ राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर 1888 को तमिलनाडु के छोटे से गांव तिरुमनी में ब्राह्मण परिवार में हुआ था. इनके पिता का नाम सर्वपल्ली विरास्वामी था, वे विद्वान ब्राम्हण थे. इनके पिता के ऊपर पुरे परिवार की जिम्मदारी थी, इस कारण राधाकृष्णन को बचपन से ही ज्यादा सुख सुविधा नहीं मिली. राधाकृष्णन ने 16 साल की उम्र में अपनी दूर की चचेरी बहन सिवाकमु से शादी कर ली. जिनसे उन्हें 5 बेटी व 1 बेटा हुआ. इनके बेटे का नाम सर्वपल्ली गोपाल है, जो भारत के महान इतिहासकारक थे. राधाकृष्णन जी की पत्नी की मौत 1956 में हो गई थी.

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी की शिक्षा

डॉ राधाकृष्णन का बचपन तिरुमनी गांव में ही व्यतीत हुआ. वहीं से इन्होंने अपनी शिक्षा की प्रारंभ की. आगे की शिक्षा के लिए इनके पिता जी ने क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल, तिरुपति में दाखिला करा दिया. जहां वे 1896 से 1900 तक रहे. सन 1900 में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने वेल्लूर के कॉलेज से शिक्षा ग्रहण की. तत्पश्चात मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास से अपनी आगे की शिक्षा पूरी की. वह शुरू से ही एक मेंधावी छात्र थे. इन्होंने 1906 में दर्शन शास्त्र में M.A किया था. राधाकृष्णन जी को अपने पुरे जीवन शिक्षा के क्षेत्र में स्कालरशिप मिलती रही.

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का राजनीतिक जीवन 

भारत की आजादी के बाद यूनिस्को में उन्होंने देश का प्रतिनिदितिव किया। 1949 से लेकर 1952 तक राधाकृष्णन सोवियत संघ में भारत के राजदूत रहे। वर्ष 1952 में उन्हें देश का पहला उपराष्ट्रपति बनाया गया। सन 1954 में उन्हें भारत रत्न देकर सम्मानित किया गया। इसके पश्चात 1962 में उन्हें देश का दूसरा राष्ट्रपति चुना गया। जब वे राष्ट्रपति पद पर आसीन थे उस वक्त भारत का चीन और पाकिस्तान से युध्द भी हुआ। वे 1967में राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्त हुए और मद्रास जाकर बस गये।

सर्वपल्ली राधाकृष्णन को स्वतन्त्रता के बाद संविधान  निर्मात्री सभा का सदस्य बनाया गया था। शिक्षा और राजनीति में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए राधाकृष्णन को वर्ष 1954 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया था। सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 1967 के गणतंत्र दिवस पर देश को सम्बोधित करते हुए उन्होंने यह स्पष्ट किया था कि वह अब किसी भी सत्र के लिए राष्ट्रपति नहीं बनना चाहेंगे और बतौर राष्ट्रपति ये उनका आखिरी भाषण था।

सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का निधन 17 अप्रैल 1975 को एक लम्बी बीमारी के बाद हो गया राधाकृष्णन के मरणोपरांत उन्हें मार्च 1975 में अमेरिकी सरकार द्वारा टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इस पुरस्कार को ग्रहण करने वाले यह प्रथम गैर-ईसाई सम्प्रदाय के व्यक्ति थे। डॉक्टर राधाकृष्णन के पुत्र डॉक्टर एस. गोपाल ने 1989 में उनकी जीवनी का प्रकाशन भी किया।

उनके विद्यार्थी जीवन में कई बार उन्हें शिष्यवृत्ति स्वरुप पुरस्कार मिले। उन्होंने वूरहीस महाविद्यालय, वेल्लोर जाना शुरू किया लेकिन बाद में 17 साल की आयु में ही वे मद्रास क्रिस्चियन महाविद्यालय चले गये। जहा 1906 में वे स्नातक हुए और बाद में वही से उन्होंने दर्शनशास्त्र में अपनी मास्टर डिग्री प्राप्त की। उनकी इस उपलब्धि ने उनको उस महाविद्यालय का एक आदर्श विद्यार्थी बनाया।

दर्शनशास्त्र में राधाकृष्णन अपनी इच्छा से नहीं गये थे उन्हें अचानक ही उसमे प्रवेश लेना पड़ा। उनकी आर्थिक स्थिति ख़राब हो जाने के कारण जब उनके एक भाई ने उसी महाविद्यालय से पढाई पूरी की तभी मजबूरन राधाकृष्णन को आगे उसी की दर्शनशास्त्र की किताब लेकर आगे पढना पड़ा।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को मिले पुरस्कार

•  1938 ब्रिटिश अकादमी के सभासद के रूप में नियुक्ति।

•  1954 नागरिकत्व का सबसे बड़ा सम्मान, “भारत रत्न”।

•  1954 जर्मन के, “कला और विज्ञानं के विशेषग्य”।

•  1961 जर्मन बुक ट्रेड का “शांति पुरस्कार”।

•  1962 भारतीय शिक्षक दिन संस्था, हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिन के रूप में मनाती है।

•  1963 ब्रिटिश आर्डर ऑफ़ मेरिट का सम्मान।

•  1968 साहित्य अकादमी द्वारा उनका सभासद बनने का सम्मान (ये सम्मान पाने वाले वे पहले व्यक्ति थे)।

•  1975 टेम्पलटन पुरस्कार। अपने जीवन में लोगो को सुशिक्षित बनाने, उनकी सोच बदलने और लोगो में एक-दुसरे के प्रति प्यार बढ़ाने और एकता बनाये रखने के लिए दिया गया। जो उन्होंने उनकी मृत्यु के कुछ महीने पहले ही, टेम्पलटन पुरस्कार की पूरी राशी ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय को दान स्वरुप दी।

•  1989 ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा रशाकृष्णन की याद में “डॉ. राधाकृष्णन शिष्यवृत्ति संस्था” की स्थापना।

डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा लिखे गए पुस्तके

•  द एथिक्स ऑफ़ वेदांत.

•  द फिलासफी ऑफ़ रवीन्द्रनाथ टैगोर.

•  माई सर्च फॉर ट्रूथ.

•  द रेन ऑफ़ कंटम्परेरी फिलासफी.

•  रिलीजन एंड सोसाइटी.

•  इंडियन फिलासफी.

•  द एसेंसियल ऑफ़ सायकलॉजी.

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की मृत्यु

17 अप्रैल 1975 को एक लम्बी बीमारी के बाद डॉ राधाकृष्णन का निधन हो गया. शिक्षा के क्षेत्र में उनका योगदान हमेंशा याद किया जाता है. इसलिए 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाकर डॉ.राधाकृष्णन के प्रति सम्मान व्यक्त किया जाता है.

राधाकृष्णन को मरणोपरांत 1975 में अमेंरिकी सरकार द्वारा टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो कि धर्म के क्षेत्र में उत्थान के लिए प्रदान किया जाता है. इस पुरस्कार को ग्रहण करने वाले यह प्रथम गैर-ईसाई सम्प्रदाय के व्यक्ति थे.

Monday, 5 August 2024

78वां स्वतंत्रता दिवस 2024

                                          78वां स्वतंत्रता दिवस 2024


भारतीय स्वतंत्रता दिवस वह दिन है जब " हम, भारत के लोग " अपनी कड़ी मेहनत से अर्जित स्वतंत्रता, एकता और अपने राष्ट्र की जीवंत भावना का जश्न मनाते हैं। जैसा कि राष्ट्र 15 अगस्त 2024 को 78वें स्वतंत्रता दिवस के भव्य समारोह की तैयारी कर रहा है ,

                                                      भारतीय स्वतंत्रता दिवस समारोह 2024 का थीम                             

  • 78वें भारतीय स्वतंत्रता दिवस 2024 का विषय या नारा 'विकसित भारत' है, जो स्वतंत्रता के 100वें वर्ष के साथ 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र में बदलने के सरकार के दृष्टिकोण के अनुरूप है।
  • यह महत्वाकांक्षी दृष्टिकोण बुनियादी ढांचे, प्रौद्योगिकी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा सहित विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक विकास पर केंद्रित है, जिसका लक्ष्य भारत की वैश्विक स्थिति को ऊपर उठाना है।
  • यह विषय आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति और सतत विकास के प्रति प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है, तथा एक ऐसे राष्ट्र का निर्माण करता है जहां प्रत्येक नागरिक उन्नति कर सके।
  • यह एक समृद्ध, समावेशी और लचीले भारत के निर्माण की सामूहिक आकांक्षा को दर्शाता है, जो आधुनिक प्रगति को अपनाते हुए अपनी समृद्ध विरासत का जश्न मनाएगा।

         78वें स्वतंत्रता दिवस समारोह 2024 की प्रमुख विशेषताएं

    • लाल किला समारोह - समारोह का केन्द्र बिन्दु दिल्ली स्थित प्रतिष्ठित लाल किला था।
      • प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय ध्वज फहराया और सरकार की उपलब्धियों तथा भविष्य की योजनाओं का विवरण देते हुए मुख्य भाषण दिया।
    • भव्य सैन्य परेड - भारत की सैन्य शक्ति का एक शानदार प्रदर्शन, जिसमें सशस्त्र बलों की वीरता और अनुशासन का प्रदर्शन होता है।
      • परेड में प्रभावशाली संरचना, उन्नत हथियार और पारंपरिक रेजिमेंट शामिल होंगे, जो देश की ताकत और एकता को दर्शाएंगे।
    • राष्ट्रव्यापी वृक्षारोपण अभियान – रक्षा मंत्रालय 15 अगस्त, 2024 को 78वें स्वतंत्रता दिवस समारोह के अवसर पर पूरे देश में 15 लाख वृक्षारोपण का विशाल अभियान चलाएगा ।
      • वृक्षारोपण अभियान 'एक पेड़ मां के नाम' अभियान का एक हिस्सा है और इसे तीनों सेनाओं और संबंधित संगठनों जैसे डीआरडीओ, रक्षा सार्वजनिक उपक्रमों, सीजीडीए, एनसीसी, सैनिक स्कूलों और आयुध कारखानों के माध्यम से संचालित किया जाएगा।
    • देशभक्ति का उत्साह - पूरा देश देशभक्ति की लहर में डूबा हुआ था, लोग अपने घरों को सजा रहे थे, झंडे फहरा रहे थे और विभिन्न समारोहों में भाग ले रहे थे।
      • सड़कों और सार्वजनिक स्थानों को तिरंगे के रंगों से सजाया जाएगा, जबकि समुदाय एक साथ मिलकर देशभक्ति के गीत गाएंगे, सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करेंगे और भारत की स्वतंत्रता की यात्रा का सम्मान करने वाली गतिविधियों में भाग लेंगे।
    • सांस्कृतिक कार्यक्रम - स्कूली बच्चे भारत की विरासत और एकता का जश्न मनाते हुए सांस्कृतिक नृत्य और गीत प्रस्तुत करते हैं।
      • ये प्रदर्शन क्षेत्रीय परंपराओं, भाषाओं और कलाओं को उजागर करते हैं तथा देश के विविध सांस्कृतिक परिदृश्य को दर्शाते हैं।
    • राष्ट्रव्यापी सहभागिता पहल - रक्षा मंत्रालय, माईगव के सहयोग से , आकर्षक गतिविधियों के माध्यम से युवाओं और आम जनता में देशभक्ति की भावना को प्रेरित करने का लक्ष्य रखता है।
      • इनमें राष्ट्रव्यापी प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिताएं, रील-निर्माण प्रतियोगिताएं, देशभक्ति पोशाक प्रतियोगिताएं, चित्रकला प्रतियोगिताएं और निबंध प्रतियोगिताएं शामिल हैं, जिनका उद्देश्य नागरिकों में रचनात्मकता और राष्ट्रीय गौरव को प्रोत्साहित करना तथा उन्हें देशभक्ति की अपनी व्यक्तिगत अभिव्यक्ति साझा करने के लिए आमंत्रित करना है।
      • इन पहलों का उद्देश्य भारत की समृद्ध विरासत के प्रति गहरी सराहना पैदा करना, स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को याद करना और नागरिकों को स्वतंत्रता की भावना का जश्न मनाने के लिए एकजुट करना है। ऐसे कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं:
        • देशभक्ति पोशाक प्रतियोगिता,
        • मिशन लाइफ पर पेंटिंग प्रतियोगिता ,
        • रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर भारत ,
        • "एक भारत, श्रेष्ठ भारत" आदि पर निबंध प्रतियोगिता।
    • पुरस्कार एवं सम्मान – राष्ट्र के लिए महत्वपूर्ण योगदान देने वाले बहादुर सैनिकों और नागरिकों को पुरस्कारों से सम्मानित किया जाता है।
      • ये सम्मान वीरता, समर्पण और असाधारण सेवा के कार्यों का जश्न मनाते हैं तथा राष्ट्रीय गौरव और सुरक्षा में व्यक्तियों के योगदान को स्वीकार करते हैं।
    • एट होम रिसेप्शन - भारत के राष्ट्रपति राष्ट्रपति भवन में "एट होम" रिसेप्शन का आयोजन करते हैं, जिसमें उपराष्ट्रपति, प्रधान मंत्री और अन्य उच्च पदस्थ अधिकारियों सहित विभिन्न गणमान्य व्यक्ति शामिल होते हैं ।
      • यह आयोजन अधिकारियों के लिए एक साथ मिलकर जश्न मनाने और दिन के महत्व पर विचार करने का अवसर है।
    • राज्य स्तरीय समारोह - इसी प्रकार के ध्वजारोहण समारोह, परेड और सांस्कृतिक कार्यक्रम देश भर में राज्य की राजधानियों और जिला मुख्यालयों में आयोजित किए जाते हैं।
      • ये समारोह केंद्रीय घटनाओं को प्रतिबिंबित करते हैं और भारतीय स्वतंत्रता दिवस की भावना को क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर तक विस्तारित करते हैं।
    • सार्वजनिक भागीदारी - नागरिक विभिन्न सामुदायिक कार्यक्रमों, ध्वजारोहण समारोहों और स्कूलों, कॉलेजों और स्थानीय संगठनों में सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेते हैं।
      • जन भागीदारी भारत की स्वतंत्रता के प्रति व्यापक देशभक्ति और सामूहिक उत्सव को दर्शाती है।
    • सीधा प्रसारण - लाल किले से होने वाले कार्यक्रमों का राष्ट्रीय टेलीविजन और रेडियो पर सीधा प्रसारण किया जाता है तथा प्रिंट और डिजिटल मीडिया द्वारा व्यापक रूप से कवर किया जाता है।
      • यह कवरेज सुनिश्चित करता है कि समारोह व्यापक दर्शकों तक पहुंचे, जिससे देश भर के नागरिक इन कार्यक्रमों में वर्चुअल रूप से भाग ले सकें।
    • रोशनी - शाम के समय प्रमुख सरकारी इमारतों और स्मारकों को सजावटी रोशनी से जगमगाया जाता है।
      • इससे उत्सव का माहौल और भी बढ़ जाता है और यह स्वतंत्रता, गौरव और एकता के उत्सव का प्रतीक बन जाता है।














    Wednesday, 24 July 2024

    INTERNATION WORLD TIGER DAY - 29 JULY

     

    The tiger is the largest of the world’s big cats and this magnificent creature, with its distinctive orange and black stripes and beautifully marked face, has a day that is dedicated to it.

    Learn about International Tiger Day

    International Tiger Day has been created so that people around the world can raise awareness for tiger conservation. The aim of the day is to help promote a worldwide system whereby we are dedicated to protecting tigers and their natural habitats.

    We can also use this day to support tiger conservation issues and to raise awareness. After all, when more people are aware of something, they are going to be more inclined to help, and that is why this day is so important.

    There are a number of different issues that tigers all around the world face. There are a number of treats that are driving tigers close to extinction, and we can do our bit to make sure that we do not lose these incredible creatures. Some of the threats that tigers face include poaching, conflict with humans, and habitat loss.

    Poaching and the illegal trade industry is a very worrying one. This is the biggest threat that wild tigers face. Demand for tiger bone, skin, and other body parts is leading to poaching and trafficking. This is having a monumental impact on the sub-populations of tigers, resulting in localized extinctions. We often see tiger skins being used in home decor.

    Moreover, bones are used for medicines and tonics. This has seen illegal criminal syndicates get involved in the tiger trade in order to make huge profits. It really is a worrying industry. In fact, it is thought to be worth 10 billion dollars per annum in the United States alone. This is why we need to support charities and work hard to put an end to poaching and the illegal trade of tiger parts.

    While this represents the biggest threats to tigers, there are a number of other threats as well. This includes habitat loss. Throughout the world, tiger habitats have reduced because of access routes, human settlements, timber logging, plantations, and agriculture.

    In fact, only around seven percent of the historical range of a tiger is still intact today. That is an incredibly small and worrying amount. This can increase the number of conflicts between tigers, as they roman about and try to locate new habitats. Not only this, but genetic diversity can reduce because it can cause there to be inbreeding in small populations.

    History of International Tiger Day

    This was first celebrated in 2010 and was founded at an international summit that had been called in response to the shocking news that 97% of all wild tigers had disappeared in the last century, with only around 3,000 left alive.

    Tigers are on the brink of extinction and International Tiger Day aims to bring attention to this fact and try to halt their decline. Many factors have caused their numbers to fall, including habitat loss, climate change, hunting and poaching and Tiger Day aims to protect and expand their habitats and raise awareness of the need for conservation.

    Many international organizations are involved in the day, including the WWF, the IFAW and the Smithsonian Institute.

    How to observe International Tiger Day

    Wild tiger populations have declined by around 95% since the beginning of the 20th century. There’s now estimated to be around 3,900 wild tigers.

    Each tiger has a unique set of stripes – like a fingerprint – and this helps us identify individuals in the wild. Since the beginning of the 20th century, wild tiger populations have declined by around 95%. Sadly, there are more tigers in captivity in the US than are left in the wild. The tiger is officially classed as endangered by the IUCN.

    Animal adoptions give a huge boost to the work that the WWF is doing. They not only help fund projects to work with local communities to monitor tiger movements, reduce poaching and help people to realize benefits from living in close proximity to wild tigers – but they also support our other vital work around the world.

    So what are you waiting for head over to the WWF adopt a tiger page to help this fantastic organization and their efforts to protect this amazing animal.

    Of course, adopting a tiger is not the only way that you can help on this date. There are a number of other things that you can do. You could raise funds for a tiger charity, for example. Moreover, raising awareness is critically important. You can take to social media to make sure that your friends, followers, and family members are aware of the different threats that tigers face.

    A lot of people are not aware of these threats, and so spreading the knowledge can help to make sure that we all do our bit to ensure that the tiger’s future is a fruitful one. There will be a lot of videos, infographics, and interesting pieces of content going around that you can share with others.

    कारगिल विजय दिवस - 26 जुलाई - एक स्मृति और गर्व का प्रतीक

    कारगिल युद्ध: एक स्मृति और गर्व का प्रतीक

    कारगिल विजय दिवस स्वतंत्र भारत के सभी देशवासियों के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिवस है। भारत में प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को यह दिवस मनाया जाता है। इस दिन भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध हुआ था जो लगभग 60 दिनों तक चला और 26 जुलाई के दिन उसका अंत हुआ और इसमें भारत विजय हुआ। कारगिल विजय दिवस युद्ध में शहीद हुए भारतीय जवानों के सम्मान हेतु यह दिवस मनाया जाता है।



    इतिहास

    1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद भी कई दिन सैन्य संघर्ष होता रहा। इतिहास के मुताबित दोनों देशों द्वारा परमाणु परीक्षण के कारण तनाव और बढ़ गया था। स्थिति को शांत करने के लिए दोनों देशों ने फरवरी 1999 में लाहौर में घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए। जिसमें कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय वार्ता द्वारा शांतिपूर्ण ढंग से हल करने का वादा किया गया था लेकिन पाकिस्तान ने अपने सैनिकों और अर्ध-सैनिक बलों को छिपाकर नियंत्रण रेखा के पार भेजने लगा और इस घुसपैठ का नाम "ऑपरेशन बद्र" रखा था। इसका मुख्य उद्देश्य कश्मीर और लद्दाख के बीच की कड़ी को तोड़ना और भारतीय सेना को सियाचिन ग्लेशियर से हटाना था। पाकिस्तान यह भी मानता है कि इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार के तनाव से कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने में मदद मिलेगी।[2]

    प्रारम्भ में इसे घुसपैठ मान लिया था और दावा किया गया कि इन्हें कुछ ही दिनों में बाहर कर दिया जाएगा लेकिन नियंत्रण रेखा में खोज के बाद इन घुसपैठियों के नियोजित रणनीति के बारे मे पता चला जिससे भारतीय सेना को एहसास हो गया कि हमले की योजना बहुत बड़े पैमाने पर की गयी है। इसके बाद भारत सरकार ने ऑपरेशन विजय नाम से 2,00,000 सैनिकों को कारगिल क्षेत्र मे भेजा। यह युद्ध आधिकारिक रूप से 26 जुलाई 1999 को समाप्त हुआ। इस युद्ध के दौरान 527 सैनिकों ने अपने जीवन का बलिदान दिया और 1400 के करीब घायल हुए थे।[3]

    कारगिल युद्ध: एक स्मृति और गर्व का प्रतीक

    कारगिल दिवस हर साल 26 जुलाई को मनाया जाता है ताकि हम उन वीर जवानों को सम्मान दे सकें जिन्होंने 1999 में कारगिल युद्ध में अपने प्राणों की आहुति दी थी। यह युद्ध भारतीय सेना के और पाकिस्तानी सेना के बीच हुआ था, जब पाकिस्तानी सेना ने बिना सूचना दिए कश्मीर के कारगिल सेक्टर में अपनी सेना भेज दी थी। इससे पहले, कश्मीर में युद्ध तो होते रहते थे, लेकिन यह युद्ध एक बड़ी और महत्वपूर्ण घटना थी जिसने पूरे देश को एक साथ खड़ा कर दिया।

    यह युद्ध बता रहा था कि भारतीय सेना की ताकत और जांबाजी पर कोई सवाल नहीं उठा सकता है। वीर जवानों ने हिम्मत और साहस का प्रतीक दिखाया और दुश्मन को पूरी तरह से पराजित किया।

    इस दिवस पर हमें याद रखना चाहिए कि उन शहीदों ने अपनी जानों की कुर्बानी देकर हमें यह सुरक्षित और स्वतंत्र देश में रहने का मौका दिया है। हमें उनका आभारी रहना चाहिए और हमें उनकी साहस, पराक्रम और बलिदान की कड़ी याद करनी चाहिए।

    कारगिल दिवस न सिर्फ एक समारोह है, बल्कि यह एक संकेत है कि हमें हमारी सेना की महत्वपूर्ण भूमिका और उनके योगदान को समझना चाहिए। हमें इस अवसर का सम्मान करना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि हम हमेशा अपने वीर जवानों के साथ हैं।

    इसलिए, इस कारगिल दिवस पर हमें अपने मन में एक समर्पण और श्रद्धांजलि भाव रखना चाहिए, ताकि हमारे वीर शहीदों का सम्मान किया जा सके और हम उनके बलिदान को कभी न भूलें।

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